Sone Ke Kangan - Part - 1 in Hindi Motivational Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | सोने के कंगन - भाग - १

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सोने के कंगन - भाग - १

रात के लगभग बारह बज रहे थे कि तभी कुशल को उसकी पत्नी अनामिका के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। वह तुरंत ही उठा और लाइट जलाई। उसने देखा कि अनामिका दर्द के कारण तड़प रही थी।

यह देखते ही कुशल ने पूछा, “अनामिका बहुत दर्द हो रहा है क्या?”

“नहीं बहुत तो नहीं लेकिन जब भी होता है ज़ोर से ही होता है, फिर रुक जाता है फिर…!”

“हाँ-हाँ डरो नहीं, मैं माँ को बुलाकर लाता हूँ,” कहते हुए वह अपनी माँ के कमरे में आ गया।

दरवाजे पर दस्तक देते हुए उसने आवाज़ लगाई, “माँ …माँ देखो ना अनामिका को दर्द हो रहा है।”

यह सुनते ही कुशल की माँ सोनम उठ बैठी।

उसने लपक कर दरवाज़ा खोला और कहने लगी, “अभी तो समय है कुशल, अभी से दर्द…? चलो जल्दी से हम अस्पताल चले चलते हैं। डॉक्टर को दिखाना ही बेहतर होगा।”

“हाँ माँ ठीक है।”

सोनम ने अपने पति को आवाज़ देते हुए कहा, “अजी सुनते हो हम अस्पताल जा रहे हैं। आप अपना ख़्याल रखना।”

“ठीक है मुझे ख़बर करते रहना। डॉक्टर ने क्या कहा और अनामिका कैसी है, बताते रहना।”

“हाँ-हाँ आप चिंता मत करो पल-पल की ख़बर तुम्हें मिलती रहेगी।”

“ठीक है जाओ, तुम अपना भी ख़्याल रखना।”

कुशल और सोनम, अनामिका को लेकर अस्पताल पहुँच गए।

डॉक्टर ने अनामिका को देखने के बाद बड़े ही चिंतित अंदाज़ और दुखी स्वर में कहा, “अभी तुरंत ही ऑपरेशन करना पड़ेगा, बच्चा उल्टा हो गया है। दर्द भी शुरू हो गए हैं और समय भी कम है। यह आठवें महीने का पहला ही हफ्ता तो है। अनामिका को हिम्मत रखना होगा; भगवान चाहेंगे तो सब ठीक हो जाएगा।”

सभी ने मिलकर डॉक्टर की बात को मान लिया और अनामिका को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया।

उसी समय डॉक्टर ने कहा, “केस थोड़ा मुश्किल है पर मैं अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करूंगी। कुशल जी आप पैसों का इंतज़ाम कर लेना।”

“डॉक्टर साहब लगभग कितना ख़र्च …?”

कुशल की बात पर ध्यान ना देते हुए तब तक डॉक्टर जल्दी में ऑपरेशन थिएटर में चली गईं।  

डॉक्टर ने कुछ नर्सों के साथ मिलकर ऑपरेशन को अंजाम दिया। अनामिका का ऑपरेशन सफलतापूर्वक हो गया और उसने एक बच्ची को जन्म दिया। लेकिन बच्ची बहुत ही कमजोर थी और पूर्ण रूप से विकसित भी नहीं थी। उसे दो हफ्तों के लिए इनक्यूबेटर में रखा गया। सभी लोग ऊपर वाले से बच्ची के लिए प्रार्थना कर रहे थे।

बच्ची के स्वस्थ होते ही अस्पताल के कर्मचारी ने कुशल के हाथों में बिल थमाते हुए कहा, “इस बिल का पूरा भुगतान करने के बाद आप बच्ची को घर ले जा सकते हैं।”

इस बिल में लगभग तीन लाख के आसपास का हिसाब था। कुशल के हाथ बिल को पकड़ कर काँप रहे थे। मध्यम वर्गीय परिवार के लिए तीन लाख बड़ी रक़म होती है।

सोनम ने कुशल के कांपते हाथ और चिंतित चेहरा देखकर सब कुछ पढ़ लिया। वह कुशल के पास आईं और अपने कंगन उतारते हुए उन्होंने कहा, “चिंता मत कर कुशल, मेरे कंगन को गिरवी रख कर पैसे ले आ।”

“अरे माँ यह क्या …? मैं किसी से कर्ज़ ले लूंगा।”

“कर्ज़ …? नहीं-नहीं कुशल ऐसा सोचना भी मत, हमें तनाव नहीं चाहिए। ऐसे समय के लिए ही तो हम गहने जोड़कर रखते हैं ताकि दुख तकलीफ में काम आ जाएं।” 

“ठीक है माँ,” कहते हुए कुशल वह कंगन लेकर चला गया।

अब डॉक्टर पैसों का इंतज़ार कर रही थी और परिवार घर जाने का।

सोनम ने बच्ची के हाथों में काले मोतियों की एक सुंदर-सी डोरी को बाँध दिया था ताकि उनकी गुड़िया को किसी की भी नज़र ना लग सके।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः